तीन महीने पहले सरकार में ऐसा एक भी व्यक्ति मिलना मुश्किल था जो जीएसटी को क्रांतिकारी सुधार न बता रहा हो। सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता यह मान रहे थे कि भारत का अधिकांश कारोबार कर दायरे से बाहर है, कम से कम रियायतों से और ज्यादा से ज्यादा सख्ती वाले जीएसटी के जरिये उसे साफ- सुथरा बनाया जाएगा।इससे महंगाई कम होगी, सरकार की आमदनी में इजाफा होगा विकास दर तेज गति से आगे बढ़ सकेगी। एक जुलाई मध्यरात्रि में यही जीएसटी देश के इतिहास सबसे बड़ा टैक्स सुधार था। तीन महीने बीतने के बाद जीएसटी अपने सभी बुनियादी सुधारवादी प्रावधानों को छोड़ कर सर के बल खड़ा हो गया। वजहों को अंदाजना मुश्किल नहीं है। टैक्स बेस से वोट बेस ज्यादा कीमती है। जमीन खिसकने से सरकार इतनी डरी कि जीएसटी में वह बदलाव भी कर दिये गए जिनकी जरुरत नहीं थी। जीएसटी अब पूरी तरह लुंज- पुंज है इससे ज्यादा टैक्स के अलावा जो भी प्रमुख सुधार थे अब वापस हो गए हैं।
क्या है बदलावों का मतलब ?
1. अपनी 22वीं बैठक में जीएसटी काउंसिल ने दो अहम बदलाव किए। पहला, जीएसटी के तहत कंपोजीशन स्कीम में छूट की सीमा को बढ़ा दिया। दूसरा 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार को प्रति माह रिटर्न दाखिल करने की जगह तिमाही आधार पर रिटर्न दाखिल करने की छूट दे दी।
2.मासिक रिटर्न जीएसटी की बुनियाद थे। इसके जरिये कारोबारी बिलों की मैचिंग होनी थी। टैक्स चोरी पकड़ी जानी थी। व्यापारियों का हर काम साफ -सुथरा व बिल पर करने पर बाध्य किया जाना था और इनपुट टैक्स क्रेडिट का नियमित भुगतान होना था।
3. तिमाही रिटर्न की पुरानी व्यवस्था लौटने के बाद इस फैसले से जीएसटी के दायरे में आने वाले लगभग 90 फीसदी कारोबार मासिक मॉनीटरिंग से बाहर हो गए हैं। अब महज 10 फीसदी बड़े कारोबारियों को मासिक आधार पर रिटर्न दाखिल करना होगा। इसमें कोई हैरानी नहीं होगी कि आगे चलकर बचे इन 10 फीसदी बड़े कारोबार को भी मासिक रिटर्न दाखिल करने से छूट दे दी जाए क्योंकि जब उनके सप्लायर तिमाही रिटर्न भरेंगे तो इनके लिए मासिक रिटर्न व्यावहारिक नहीं रहेंगे।
4. नियमित इनपुट टैक्सि क्रेडिट का भुगतान अब मुश्किल दिखता है जो कारोबार की लागत कम करने लिए जरुरी था।
5. ई वेबिल सहित अन्य जीएसटी प्रावधान भी लंबे समय के टाल दिये गए हैं, जो कारोबार को पारदर्शी बनाने के लिए जरुरी थे।
6. बजट में कम से कम साल में एक बार ही टैक्स दरें बदलती थीं। जीएसटी काउंसिल ने तीन महीने में तीन बार उत्पाद और ।सेवाओं पर टैक्स दरों को बदला है। और चुनावी दबाव में आगे भी बदलाव हो सकते हैं। टैक्स दरों में सिथरता के बजाय अनिश्चितता बढ़ गई है।
7. तिमाही रिटर्न, कंपोजीशन स्कीम, टैक्स दरों में उथलपुथल से केंद्र व राज्यों के राजस्व का बाजा और बिगड़ सकता है।
जीएसटी जिन मुश्किलों के चलते बदला गया उन्हें लाने वाले सभी प्रावधान ठीक तीन महीने पहले तैयार हुए थे। उस समय सरकार को यह सलाह दी जा रही थी कि इन प्रावधानों पर उद्योग और व्यापार से चर्चा होनी चाहिए और तैयारी का वक्त मिलना चाहिए, जैसा कि जीएसटी लागू करने वाले अन्य देशों में हुआ है।
1. जीएसटी लागू करने के लिए 1 जुलाई की तारीख क्यों तय की गई ? जबकि केन्द्र सरकार इसे पूरी तैयारी के साथ 15 सितंबर तक लागू कर सकती थी। इससे जीएसटी के सॉफ्टवेयर को दुरुस्त करने और कारोबारियों को नए कर व्यवस्था में जाने की तैयारी के लिए अधिक समय मिल जाता। तीन माह में देश की अर्थव्यरवथा को जो नुकसान हुआ है उसका दायित्व किस पर है ?
2. यह जानते हुए कि जीएसटीन का परीक्षण नहीं हुआ था, इसका शुरुआती कामकाज संतोषजनक नहीं था इसके बाद भी जीएसटीएन ऐसे 90 फीसदी कारोबारियों पर थोपा गया जिनकी डिजिटल साक्षरता बेहद कमजोर है।
3. जीएसटी लागू करने से उद्योग, व्याापार पर पड़ने वाले असर का असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ना संभावित था ?
4. क्यों जीएसटी लागू करने से पहले केन्द्र सरकार ने एक्साइज और वैट के तहत टैक्स ढ़ाचे (रेट रिफॉर्म) में सुधार करने को प्राथमिकता नहीं दी ?
5. पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का जो ज्ञान अब उपज रहा है उसे केवल तीन माह जून में जीएसटी बनाते समय क्यों खारिज किया गया ?
जीएसटी एक बड़ा और महत्वयपूर्ण सुधार था। पहले जल्दबाजी और बाद में चुनावी खौफ में सरकार ने इसे गंवा दिया। जीएसटी के तीन माह के सफर अब सुधार नही बचा है केवल शेष रह गया है टैक्स जो कई सेवाओं और उत्पादों पर पहले से ज्यादा है।