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जानें क्यों षष्ठी के दिन डूबते सूर्य को देते हैं अर्घ्य, क्यों की जाती है षष्ठी मां की पूजा

छठ पर्व

सूर्य देव की उपासना का पर्व छठ शुरू हो चुका है। चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार में भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं। 24 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ ये पर्व सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त होगा।  मान्‍यता है कि दिन के तीनों पहर सुबह, दोपहर और शाम सूर्य देव की पूजा करने से उसका असर अलग-अलग तरीके से होता है। कहा जाता है कि डूबते सूर्य देव को अर्घ्‍य देने से जीवन में आर्थिक, सामाजि‍क, मानसिक, शारीरि‍क रूप से होने वाली हर प्रकार की मुसीबतें हमेशा दूर रहती हैं। इसका मुख्य संबंध संतान सुख से है।

क्यों की जाती है 

कहा जाता है कि एक समय राजा कार्तवीर्य धरती पर राज करते थे। वे नियमित रूप से उगते सूर्य की पूजा करते थे। इसके बावजूद राजा के 99 पुत्र हुए लेकिन सभी की मौत हो गई। जिसके बाद राजा ने नारद जी से संतान के जीवित रहने का उपाय पूछा। नारद मुनि ने कहा कि आप सुबह तो सूर्य की पूजा करते ही हैं, शाम के समय भी सूर्यदेव की पूजा कीजिए।

राजा ने नारद मुनि के कहने पर शाम के समय डूबते सूर्य की पूजा की इससे 100वां पुत्र हुआ जो सहस्रबाहु कहलाया। राजा का यह पुत्र जीवित रहा और पराक्रमी हुआ।

वहीं कहा जाता है कि सूर्य के त्रिकाल में तीन स्वरूप होते हैं उदय के समय सूर्य ब्रह्म स्वरूप होते हैं, दोपहर में विष्णु और संध्या काल में शिव। संध्या के समय इनकी पूजा से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। इसलिए छठ पर्व के अवसर पर डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है।

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