जात का जहर, गुस्से में आनंद….
जातिगत समाज, राजनीति का एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसे लोगों की पहचान से जोड़ा जाता है। जातिवाद लोकतंत्र के विकास में एक बड़ी बाधा है, और देश में वोट की राजनीति होती है, जिसमें जातिगत वोट हमेशा से भेदभाव दूर करने की बजाय आबादी को और जोड़ने का माध्यम बन चुका है।
बिहार में लगभग 15 फीसदी आबादी उच्च जातियों से संबंधित है, और इसे राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक के रूप में देखा जाता है। इसका परिणाम है कि पार्टियों का फोकस स्वर्ण जातियों पर रहता है। हालांकि, अब आरजेडी भी इसमें सेंधमारी कर रही है और बिहार की राजनीति में गरमाहट हो रही है।
राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा के ठाकुर के कुआं पर की गई कविता ने बिहार की राजनीति को और गरम बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप, राजपूत समुदाय गुस्से में हैं और मनोज झा पर समाजवादी का आलोचना बौछार किया गया है।
आनंद मोहन जहां जीभ खींचने की बात कर रहे हैं, वही उनके बेटे चेतन आनंद भी हैं, जो आरजेडी के विधायक हैं। उन्होंने मनोज झा के खिलाफ खुलकर बयान दिया है कि वे ज्यादा समाजवादी नहीं बल्कि अपने नाम के साथ “झा” को हटा दें। यह संकेतक बयान है कि आरजेडी के आंतरिक द्वंद्व का भी एक पहलू है।
आनंद मोहन सिंह ने बीते 16 सालों से सलाखों के पीछे बिताए और इस साल 27 अप्रैल को रिहा किये गए हैं। नीतीश कुमार के लिए सवर्ण वोट के महत्व को समझते हुए इसके पीछे का कदम हो सकता है।
इसके साथ ही, बिहार में आरक्षण विरोध के उग्र चेहरे के रूप में आनंद मोहन सिंह का नाम आया है, और वह सुप्रीम कोर्ट में रिहाई की याचिका के बारे में लंबित है।
आनंद मोहन सिंह की जीवनी में एक बड़ा टर्निंग पॉइंट है 1994 में हुआ, जब उनके नेता छोटन शुक्ला की हत्या हुई और उनके इशारे पर गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या हुई।
इस प्रकार, बिहार की राजनीति में जातिगत दलों के साथ-साथ आरक्षण और समाजिक समानता के मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं, जो विधायकों और राजनेताओं के बीच एक महत्वपूर्ण जंग का हिस्सा बन चुके हैं।