नई दिल्ली : रासायनिक व जैविक हथियारों के निर्माण के खिलाफ काम करने वाली बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्था में भारत को शुक्रवार को एंट्री मिली है। भारत अब ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य बन गया है, यह ग्रुप इस बात को सुनिश्चित करता है कि रासायनिक और जैविक हथियार का निर्यात नहीं हो। मिसाइल टेक्नोलोजी कंट्रोल रिजाइम व वासेनार अरेंजमेंट की सदस्यता हासिल करने के बाद भारत की यह बड़ी सफलता है। इस सफलता के बाद न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत की दावेदारी और मजबूत हो गई है, जहां चीन पाकिस्तान के इशारे पर भारत की दावेदारी पर रोड़ा अटका रखा है।
आपको बता दें कि चीन ना तो एमटीसीआर और ना ही डब्ल्यूए व ना ही एजी का सदस्य है, ऐसे में जिस तरह से भारत को इन तीनों संस्था में स्थान मिला है उसने भारत की एनएसजी में सदस्यता के दावे को मजबूत किया है। ऑस्ट्रेलिया ग्रुप की ओर से कहा गया है कि 19 जनवरी 2018 को भारत आधिकारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का 43वां सदस्य बन गया है, इस ग्रुप में देश स्वयं रासायनिक व जैविक हथियारों के बढ़ावे के खिलाफ काम करते हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से भी इस बाबत एक आधिकारिक बयान जारी किया गया है जिसमे कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया ग्रुप ने आपसी सहमति से भारत को 43 वें सदस्य के रूप में शामिल करने का फैसला लिया है। भारत की ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के सदस्य बनने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि इससे सभी देश आपस में जैविक व रासायनिक हथियारों के विस्तार के खिलाफ मिलकर काम करेंगे, जिसका सभी देशों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में भारत की एंट्री के बाद भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के हथियारों के विस्तार के खिलाफ अपना योगदान और भी मजबूती से देगा।
भारत को ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में सदस्यता मिलना इसलिए भी काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि एनएसजी में भारत की दावेदारी को दुनिया के तकरीबन सभी बड़े देश को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन चीन पाकिस्तान के इशारे पर लगातार भारत की दावेदारी पर रोड़ा अटकाता रहा है। चीन इस बात को मुद्दा बनाता रहा है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, ऐसे में बगैर एनपीटी पर हस्ताक्षर किए भारत को इसकी सदस्यता नहीं दी जा सकती है, लिहाजा इस क्लब में पाकिस्तान को शामिल करना चाहिए। लेकिन एजी में शामिल होने के बाद भारत अपनी दावदारी को और भी मजबूती से आगे रख पाएगा।