नई दिल्ली: देश में सरकारी बैंकों की संख्या 21 से घटकर 10 से 15 पर लाई जा सकती है। हालांकि, इनमें सरकार की बहुलांश हिस्सेदारी बनी रहेगी। वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता डूबे कर्ज की समस्या से निपटना है। उसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण होगा। सान्याल ने भारत आर्थिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अभी 21-22 सरकारी बैंक हैं। एकीकरण के बाद इन बैंकों की संख्या घटकर 10 से 15 रह जाएगी। इनमें से कुछ बड़े बैंकों का एकीकरण किया जाएगा। लेकिन यह ध्यान रखें कि सरकार इसे घटाकर 4 से 5 करने नहीं जा रही है।
उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि ऐसा करने पर कुछ ऐसे बड़े बैंक जो जाएंगे जिनकी विफलता को झेला नहीं जा सकता। फिलहाल हमारे पास एक बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक है। हम बड़ी संख्या में ऐसे बैंक नहीं चाहते। ऐसा होने पर हमारे सामने जोखिम पर ध्यान देने की समस्या पैदा होगी। उन्होंने कहा कि बैंकों का एकीकरण दीर्घावधि का वाणिज्यिक फैसला है। वहीं सार्वजनिक बैंकों का पुन:पूंजीकरण तात्कालिक मुद्दा है। इससे ही बैंकिंग प्रणाली को ठीक से चलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे बैंक जो दक्षता से काम नहीं कर रहे हैं उन्हें मिलाकर बड़ा दक्षता वाला बैंक नहीं बनेगा। ऐसे में डूबे कर्ज की समस्या हमारी पहली प्राथमिकता है।
बैंकों के बही खातों की स्थिति सुधारने की प्रक्रिया के तहत रिजर्व बैंक ने पहले ही दबाव वाली संपत्तियों की पहचान शुरू कर दी है। उनके लिए प्रावधान की व्यवस्था की जा रही है। कुछेक के लिए दिवाला एवं शोधन अक्षमता प्रक्रिया शुरू की जा रही है। एकीकरण की ताजा प्रक्रिया के तहत भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) और पांच सहयोगी बैंकों का एक अप्रैल, 2017 को भारतीय स्टेट बैंक में विलय किया गया है। इससे एसबीआई दुनिया के 50 शीर्ष बैंकों में शामिल हो गया है।