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खेल लड़कियों का ….

जब सावन के झूले पर झुलती भारतीय नारी तीज की तैयारी में हरी-भरी साड़ियां में लिपटी अपनी हरी-हरी चूड़ियां खनका रही थी, उसी वक्त देश की झूलन लॉर्ड्स के मैदान पर बॉल और बल्ला से हमारे सपनों की उम्मीद खनका रही थी।

लॉर्ड्स की यह रात ‘पूनम’ की रात नही हो सकी। भारत की टीम हार गई। पूनम रावत की पारी पराजय से टीम को नही बचा सकी । 86 रन के बाद पूनम के शतक का हमें भरोसा था, पर वह टूट गया। भारत 219 रन को छू नही पाया। बावजूद शाबास बेटियां ।यहां की भी और वहां की भी दोनो टीम को बधाई । दोनों टीमें अपनी ही थी। यह दुनिया की बदलती नजर का कमाल था।

इस जीत-हार में हमारी कोई दिलचस्पी नही है। बेटियों के हाथ में विश्व कप ! बेटियों ने क्रिकेट जीत लिया। इस मैच में भारत और इंग्लैंड कही नजर नही आ रहा था। नजरों के सामने थी तो वह विश्व कप खेलती दुनियां की बेटियां।

बेटियां केवल बच्चा पैदा करने की मशीन नही , बल्कि रन-मशीन भी है। बेलन छोड़ बल्ला घुमाती लड़कियां भविष्य की उम्मीद है। युग-परिवर्तन का संकेत है यह। बहुत ही लिंगभेद और रंगभेद की पीड़ा भोग चुकी है यह दुनिया। बाल नही विषमता को बाउंड्री पार करा रही थी लॉर्ड्स की क्रिकेट कन्या। हे लॉर्ड्स !

‘पूनम’ पूरब से पश्चिम गई। पश्चिम ने पहले ही टेलर से परिचय कराया । मुग्ध करने वाली टेलर की निर्दोष आंखें। भारत आज इसी आंखों में झांक रहा है। वह यहां रहती तो शायद केवल चांद होती, कोई चरित्र नही होती।  निठल्ले निकम्मे कवियों और गजलकारों की कविता और गजल होती। खैर, लड़कियां को अब इनकी प्रशंसा नही, कालेज और क्रिकेट का प्रमाणपत्र चाहिए। गहनों से गूगल का यह नया सफर।

पश्चिम में बदलाव ने बहुत पहले दस्तक दिया। मैदान में स्त्रियां यहां पहले आई।  स्त्री- मुक्ति की वह आवाज बाद में भारत आई। कोशिशें यहां भी कम नही हुई थी । सावित्री बाई ने अवश्य ही जोड़ लगाया पर संस्कृति की जकडनें टूट नही सकी। सावित्री की शिक्षा और सिमोन के सेकेंड-सेक्स के कारण हाशिये की जिंदगी मुख्यधारा में लौट रही हैं। हर खेल में माहिर हो रही हैं लड़कियां। रति और रन सब इनके अपने हैं। यद्यपि इस रति में क्रिया कम प्रतिक्रिया ज्यादा है। अब वास्तव में स्त्रियां क्रियात्मक हो रही हैं। मंदिरा आई थी क्रिकेट की दुनिया में। लोग चौंक रहे थे। जबकि नारियों के लिए निरापद थी वह जगह। पर मंदिरा के बाद जब कल मनप्रीत की अर्धशतकीय पारी को देखा तो सब बदला-बदला सा दिख रहा था।

खेल अपना हो पराया, देसी हो या विदेशी , लड़कियों के लिए इस खेल को समझना जरूरी है। जीवन के किसी भी खेल में लय जरूरी है। केवल लगन से ही बात नही बनती। भारत की टीम अंतिम-अंतिम में हार गई। स्त्रियां अंतिम में ही हार जाती हैं संस्कृति , धर्म , परंपरा और कभी परिवार के नाम पर। खेल बहुत कुछ सिखा जाता है जाने-अनजाने। जल्दीबाजी में खराब शॉट से जितना हो सके बचा जाना चाहिए। जल्दीबाजी हमें जीत से दूर करती है। धैर्य जरूरी है खेल में।

जीवन में बहुत मैच होने हैं। बहुत ओवर बांकी है। धीरे- धीरे खेला जाय। वह दिन दूर नही जब माही और मनप्रीत साथ-साथ खेलेंगे। तब महिला क्रिकेट टीम नही , बल्कि क्रिकेट टीम ही होगी जिसमें आधी आधी की संख्या होगी। सभी क्रिकेट बाईस पसेरी की ही हो। आओ इंग्लैंड की जीत का जश्न इस तरह मनाएं। जियो हमारी मितालियाँ। तुम्हारे जीवन के ‘राज’ से दुनिया की राजनीति बदलेगी। देश स्वागत के लिए खड़ा है।

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