पटना । बिहार कांग्रेस के हटाए गए अध्यक्ष अशोक चौधरी ने आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने पद से हटाए जाने के तरीके पर आपत्ति दर्ज की है। साथ ही यह भी कहा है कि वे दशहरा बाद कोई ‘फैसला’ लेंगे। अशोक चौधरी के बयानों को देखते हुए पार्टी में टूट के कयास लगाए जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बड़ी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बनने वाले हैं ?
आलाकमान ने पद से हटाया
विदित हो कि अशोक चौधरी को मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पद से हटा कर पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे कौकब कादरी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। अशोक चौधरी ने पहले ही आलाकमान से आग्रह किया था कि अगर उन्हें हटाना है तो पार्टी जल्दी फैसला करे। इसके कुछ ही दिनों बाद आलाकमान ने यह कार्रवाई की है। लेकिन, अशोक चौधरी ने कार्रवाई के तरीके पर आपत्ति दर्ज की है।
राजद से गठबंधन के खिलाफ थे अशोक चौधरी
अशोक चौधरी पर महागठबंधन में लालू प्रसाद यादव का विरोधी माना जाता है। कांग्रेस का यह धड़ा नहीं चाहता कि बिहार में पार्टी का राजद से गठबंधन रहे। हालांकि, आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि राजद से गठबंधन जारी रहेगा। राजद से गठबंधन को लेकर अशोक चौधरी के स्टैंड को लेकर विरोधी गुट ने उनके खिलाफ अभियान छेड़ा, जिसका परिणाम समाने है।
पार्टी विरोधी साजिश के लगे आरोप
पार्टी में विरोधियों की मानें तो अशोक चौधरी जदयू से मिलकर पार्टी तोड़ने की साजिश में लगे थे। इसकी सूचना आलाकमान को दी गई। अशोक चौधरी के खिलाफ कार्रवाई को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। बिहार कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी ने भी इशारों में कहा है कि आलाकमान की कार्रवाई के पीछे कोई तो कारण जरूर होगा।
सीएम नीतीश के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर
अशोक चौधरी पर कार्रवाई के पीछे का कारण राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का विरोध तथा जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार के प्रति उनके सॉफ्ट कॉर्नर को बताया जा रहा है। उन्हें पद से हटाए जाने के बाद अब चर्चा है कि चौधरी कुछ विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ सकते हैं। अशोक चौधरी के तेवर से भी इस कयास को बल मिलता दिख रहा है। जदयू ने भी अशोक चौधरी की तारीफ का कोई मौका हाथ से नहीं गंवाया है। अशोक चौधरी को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद भी जदयू ने उनके समर्थन में बयान दिया है।
नहीं दी सम्मानजनक विदाई
चौधरी ने कहा है कि उन्हें पद से हटाने में सम्मान का ध्यान नहीं रखा गया। पार्टी के बिहार प्रदेश प्रभारी सीपी जोशी पर सीधा हमला करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्होंने ही आलाकमान को उनके खिलाफ गलत जानकारी देकर यह कार्रवाई कराई है। चौधरी ने यह भी कहा उन्होंने पार्टी के लिए बहुत काम किया है। लेकिन, यह भी कहा कि वे दशहरा के बाद कोई फैसला लेंगे।
दलित वोटों का चेहरा बने अशोक
सवाल यह उठता है कि अशोक चौधरी के प्रति जदयू के प्रेम का राज क्या है ? राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगले चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। उसमें महादलित वोट का खासा महत्व है। बीते कुछ समय से अशोक चौधरी भी बिहार में महादलित वोट का एक चेहरा बन कर उभरे हैं। इसमें उन्हें पिता महावीर प्रसाद की विरासत का भी फायदा मिला है। नीतीश कुमार इस महादलित वोट बैंक को साधने में अशोक चौधरी को साथ रखना चाहते हैं। दरअसल, बिहार में दलित वोट कई हिस्सों में बंट गया है। मीरा कुमार के राष्ट्रपति बनने के बाद अब वे इस रेस में नहीं रहीं, लेकिन रामविलास पासवान व जीतन राम मांझी अभी महादलित वोट के दो बड़े चेहरे हैं। इस सूची में अशोक चौधरी भी शामिल हो गए हैं। बीते चुनावों में नीतीश कुमार ने अतिपिछड़ा और महादलित राजनीति को बहुत कायदे से साधा था। उनकी नजर आगे भी इस वोट बैंक पर है। आश्चर्य नहीं अगर अशोक चौधरी नीतीश कुमार के ऐसे किसी प्लान का हिस्सा बन जाएं। फिलहाल सबकी नजरें दशहरा बाद अशोक चौधरी के फैसला पर टिकी हैं। सवाल कई हैं। क्या पार्टी में उनका समर्थक गुट टूटकर अलग हो जाएगा ? बात केवल संख्या बल की है। कहा जा रहा है कि अशोक चौधरी गुट के पास दलबदल कानून के मानकों के तहत उतने विधायक नहीं कि वे अलग हो सकें।
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