बीजेपी सांसद और पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में शामिल राज्यमंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय अब उत्तर प्रदेश के नए प्रदेश अध्यक्ष होंगे। डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चंदौली से 2014 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे। अब दोबारा से वह उत्तर प्रदेश की राजनीति की कमान संभालते दिखेंगे। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मुझे पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। मैं पार्टी का छोटा सा कार्यकर्ता हूं ये मेरे लिए सम्मान की बात है। यूपी बहुत बड़ा राज्य है, इसलिए मेरी पहली प्राथमिकता होगी पार्टी को और मज़बूत करना। प्रदेश सरकार के कामों के ज़रिए पार्टी को और ज्यादा मज़बूत करना है। मैंने अपने नेतृत्व को कहा है कि मुझे केंद्र सरकार में मंत्री पद से मुक्त किया जा सके, जिसके बाद फ़्री होकर यूपी में पार्टी के लिए काम कर सकूं। पांडेय ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में जो बहुमत पार्टी को मिला हैं उसको बरकरार रखना है।
उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत से सरकार बनाने के बाद बीजेपी आलाकमान की अगली चुनौती प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव था। प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में दिया गया उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद से नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई थी। बीजेपी में एक व्यक्ति को एक पद की परंपरा है, इसीलिए अब केशव मौर्य की जगह डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय प्रदेश संगठन की सर्वोच्च कुर्सी पर आसीन होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कैबिनेट विस्तार में राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय की छवि बेहद संघर्षशील नेता की है। वर्तमान में डॉ. पाण्डेय कमेटी ऑफ रूरल डेवलपमेंट और बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं। डॉ महेंद्र नाथ पांडेय इस समय केंद्र में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री भी हैं। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष पद पर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कार्यकाल काफी समय पहले पूरा हो गया था लेकिन नए अध्यक्ष की खोज में वह कार्यवाहक के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
आरएसएस के व्यक्ति को एक और अहम पद
यूं तो पार्टी में इस पद के लिए मजबूत दावेदारों और योग्य उम्मीदवारों की कमी नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस पद के लिए डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय को चुना है। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति के बाद राजनीति की लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी का सर्वोच्च पद भी आरएसएस से जुड़े व्यक्ति को दिया गया है। समाज सेवा में सक्रिय रहे डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय छात्र जीवन से ही आरएसएस से जुड़े हुए हैं।
राम जन्म भूमि आंदोलन में शामिल
आपातकाल में डॉ. पाण्डेय पांच माह डीआरडीए के तहत जेल भेजे गए। रामजन्म भूमि आंदोलन में मुलायम सरकार ने इन्हें रासुका के तहत निरुद्ध कर दिया था। गाजीपुर (सैदपुर) के पखनपुर गांव के मूल निवासी डॉ. पाण्डेय (15 अक्टूबर 1957 को जन्म) वाराणसी के विनायका के सरस्वती नगर में निवास करते हैं। एमए, पीएचडी के साथ ही मास्टर आफ जर्नलिज्म की भी डिग्री उन्होंने हासिल की। उनकी पढ़ाई वाराणसी में हुई है। सीएम एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में वह 1973 में अध्यक्ष चुने गए। वह 1978 में बीएचयू के महामंत्री बने. पहली बार 1991 में वह भाजपा के टिकट पर विधायक बने। भाजपा सरकार में डॉ. पाण्डेय नगर आवास राज्य मंत्री, नियोजन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रदेश में वे पंचायती राज मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी रहे। भाजपा के संगठन में उन्हें क्षेत्रीय अध्यक्ष समेत प्रदेश के महामंत्री का पदभार भी सौंपा गया।
पूर्वांचल से एक और चेहरा
उत्तर प्रदेश में इन दिनों पूर्वांचल के नेताओं का बोलबाला है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद गोरखपुर से हैं और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इलाहाबाद से हैं। इलाहाबाद से ही पार्टी ने दो नेताओं के मंत्री पद भी दिया है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय भी पूर्वांचल के चंदौली क्षेत्र से सांसद हैं। ऐसे में अब प्रदेश राजनीति में बीजेपी ने एक और पूर्वांचली को अहम पद दे दिया है।
सबको खुश कर रहे हैं अमित शाह
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन में गजब की सोशल इंजीनियरिंग लागू की। पिछड़े वर्ग को साधने के लिए केशव मौर्य को दिग्गजों पर तरजीह देते हुए प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जिसका पार्टी को खूब फायदा मिला। सरकार बनी तो योगी आदित्यनाथ सीएम बने। इसके अलावा ब्राह्मण वर्ग से दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम बने तो केशव मौर्य को उनके बराबर की कुर्सी देकर ओबीसी वोटरों को अहमियत देने का संदेश दिया गया।अब ब्राह्मणों को जीत का तोहफा देने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय को चुना गया है।
दलित चेहरे को बनाने पर चल रही थी बात
विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की करीब 85 आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 69 जीती हैं। आगे के चुनाव में इसे मजबूत करने के लिए यह जरूरी था कि पार्टी किसी दलित को पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपे। इस लेकर प्रदेश में बात भी चल रही थी। हालांकि पार्टी ने ऐसा नहीं किया।