मुस्लिम समाज में जहां पर्दा प्रथा व रूढ़िवादी परंपराओं का अधिक पालन किया जाता है, वहां की लड़कियों को खेल से जोड़ना आसान नहीं है। इस समाज से आने वाली कई प्रतिभाशाली लड़कियां सामाजिक बंधन के कारण अपनी प्रतिभा के निखरने के पहले ही मुरझा जाती हैं। वहीं रांची की एकमात्र इस्लामिक एकेडमी पाम इंटरनेशनल मुस्लिम समाज की छात्राओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने का काम कर रही है। लड़कियों को मार्शल आट्र्स की ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें कराटे व ताइक्वांडो शामिल हैं।
स्कूल में आत्मरक्षा के गुर सिखाने वाले प्रशिक्षक मुहम्मद शहाबुद्दीन ने समाज की लड़कियों में खेल के प्रति अलख जगाने का निर्णय लिया और इसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए। आज स्कूल में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज की लड़कियां आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं। स्कूल में लड़कियां हिजाब पहनकर जी तोड़ मेहनत करते हुए मार्शल आट्र्स में पसीना बहा रही हैं।
इस स्कूल में शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में रखा गया है। इसी के तहत स्टैंडर्ड-2 से स्टैंडर्ड-8 तक के लिए मार्शल आर्ट अनिवार्य विषय बनाया गया। मुहम्मद शहाबुद्दीन ने बताया कि 2012 में स्कूल की लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाने का निर्णय लिया। शुरुआती दिनों में उनकी इस बात का चारों तरफ विरोध हुआ। यहां तक की स्कूल में कार्यरत कर्मियों के साथ-साथ छात्राओं के अभिभावकों को यह नागवार गुजरा। कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि यह जबर्दस्ती का बोझ है, बच्चों पर न डालें, लेकिन शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपने प्रयास को जारी रखा और छात्राओं के साथ उनके अभिभावकों की काउंसलिंग की। बताया कि यह सिर्फ खेल नहीं है।
आज जिस तरह हर जगह लड़कियां छेड़छाड़ व अपराध का शिकार हो रही हैं, ऐसे में अगर ये बच्चियां इस खेल से जुड़ेंगी तो हर वक्त अपनी हिफाजत के लिए उन्हें किसी दूसरे का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। वे अपनी रक्षा खुद कर सकेंगी। साथ ही खेल में भी अपना और प्रदेश व देश का नाम रौशन करेंगी। उनके इस मेहनत का परिणाम दिखने लगा और कुछ दिनों में 15 से 20 छात्राएं मार्शल आट्र्स क्लास के लिए आगे आईं।
शाहिन अफरोज बनी रोल मॉडल शहाबुद्दीन की सोच और उनका प्रयास जल्द ही रंग दिखाने लगा। पहली बड़ी सफलता छात्रा शाहिन अफरोज ने दिलाई। शाहिन ने ताइक्वांडो के राज्यस्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कई पदक जीतकर इस स्कूल का नाम रौशन किया। आलिया सदफ, आयशा शाहिद व आदिया जेमा ताइक्वांडो के सीनियर बेल्ट में पहुंच गईं। इनकी सफलता को देखते हुए मुस्लिम समाज के अभिभावकों ने अपने बेटियों को यहां खेल का प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा। आज यहां 100 से अधिक लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं। उनमें आत्मविश्वास भी काफी बढ़ गया है।
आप बच्चों को खेल से अलग कर के उनके विकास की कल्पना नहीं कर सकते। हमारे स्कूल में छात्रों के साथ छात्राओं को भी खेलने का अधिकार है, लेकिन पोशाक व संस्कृति से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इसका ध्यान रखते हुए आत्मरक्षा के गुर लड़कियों को सिखाए जा रहे हैं।