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आम बजट 2018-19 में परिषद की सिफारिशों की देखने को मिल सकती है झलक

आर्थिक मोर्चे पर विपक्ष की आलोचनाएं झेल रही सरकार ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) का गठन भले ही कर दिया हो लेकिन नवगठित परिषद के लिए अर्थव्यवस्था की मर्ज का इलाज करना बड़ी चुनौती होगी। सुस्त पड़ी विकास की रफ्तार को उठाने और नई नौकरियां पैदा करने के लिए परिषद को कड़ी मशक्कत करनी होगी। सूत्रों के मुताबिक नवगठित परिषद ने प्राथमिकताओं को चिन्हित करना शुरू कर दिया है। परिषद अलग-अलग विषयों पर अपनी रिपोर्ट पीएम को सौंपेगी। माना जा रहा है कि परिषद विकास दर को सुधारने के लिए अल्पावधि राजकोषीय उपायों के साथ-साथ मध्यावधि सुधारों का रोडमैप पेश कर सकती है।

माना जा रहा है कि आम बजट 2018-19 में परिषद की सिफारिशों की झलक देखने को मिल सकती है। सरकार ने पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन ऐसे समय किया है जब नोटबंदी और जीएसटी के असर के चलते व्यावसायिक गतिविधियां सुस्त पड़ने से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर घटकर तीन साल के न्यूनतम स्तर 5.7 प्रतिशत पर आ गयी है। वहीं चालू खाते का घाटा भी चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बढ़कर जीडीपी के 2.4 प्रतिशत के बराबर हो गया है। साथ ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) की दर भी घटकर जुलाई में 1.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में सुस्ती कायम रहने से नई नौकरियों में अपेक्षानुरूप वृद्धि नहीं हो रही है। इसके चलते सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गयी है।

अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर सरकार कितनी चिंतित है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि खुद वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह देश के आर्थिक हालात पर एक शीर्ष स्तरीय बैठक बुलायी जिसमें वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु, रेल मंत्री पीयूष गोयल और नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार शामिल हुए। इसके अलावा प्रधानमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव पी. के. मिश्र, वाणिज्य सचिव रीता तेवतिया और वित्त मंत्रलय के वरिष्ठ अधिकारी भी इस बैठक में मौजूद रहे।

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