नई दिल्ली : अगर आपका बच्चा भी स्मार्टफोन पर जरूरत से ज्यादा वक्त बिताता है तो सावधान हो जाइए यह आपके और आपके बच्चे के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट डॉ पूजा शिवम जेटली ऐसे ही एक केस के बारे में बताती हैं।
दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में एक बार डॉ जेटली के पास पैरंट्स अपने 10 साल के बच्चे को लेकर आए और उन्होंने बताया कि उनका बच्चा दिन में 4-5 घंटे का वक्त फोन पर मोबाइल गेम्स खेलने में बिताता था। ऐसे में उसे रोकने के लिए जब पैरंट्स ने उससे मोबाइल ले लिया तो उसने गुस्से में घर की चीजें तोड़ना शुरू कर दिया और यहां तक की माता-पिता को गालियां भी देने लगा। हालांकि उस बच्चे का आईक्यू बहुत अच्छा है और वह एक ब्राइट स्टूडेंट है।
डॉ जेटली की ही तरह देशभर के कई और मेडिकल प्रफेशनल्स हैं जो इस बात को लेकर चिंतित हैं कि किस तरह छोटे बच्चों में मोबाइल की लत लग गई है जो बच्चों के लिए सामाजिक के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी खड़ी कर रहा है। बेहद कम उम्र में जब बच्चों को मोबाइल गेम्स या फोन पर किसी और चीज की लत लग जाती है तो बच्चे खाना-पीना, साफ-सफाई जैसी बातों को भूलकर बच्चे चिड़चिड़े और आक्रामक हो जाते हैं।
जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तभी से इस समस्या की शुरुआत हो जाती है लेकिन पैरंट्स इस आने वाले खतरे को समझ नहीं पाते। 10 साल या उसके आसपास के बच्चे ही नहीं बल्कि इन दिनों तो बहुत छोटे यानी 3-4 साल के बच्चे भी मोबाइल और टैबलेट स्क्रीन से इतने ज्यादा चिपके रहते हैं जितना पहले कभी नहीं थे।
2015 में अमेरिकन नॉनप्रॉफिट कॉमन सेंस मीडिया की ओर से करवायी गई एक स्टडी के नतीजे बताते हैं कि दुनियाभर में 8 से 12 साल के बीच के बच्चे हर दिन करीब 4 घंटा 36 मिनट का वक्त स्क्रीन मीडिया के सामने बिताते हैं। साइकॉलजिस्ट डॉ शीमा हफीज कहती हैं, ‘मनोरंजन के मकसद से तो शायद भारत के बच्चे भी इतना ही वक्त मोबाइल और टीवी के सामने बिताते होंगे लेकिन अगर स्कूल में होने वाली कम्प्यूटर साइंस की क्लास और एक्सपोजर के दूसरे माध्यमों को भी जोड़ दिया जाए तो भारतीय बच्चों के लिए यह समय और ज्यादा हो जाता है।’
डीपीएस गाजियाबाद की काउंसलर रिया यादव कहती हैं, ‘बच्चों के हाथ में फोन देने के कारण अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए बहुत छोटे बच्चे जैसे 2 से 4 साल के बच्चों को माता-पिता मोबाइल फोन इसलिए देते हैं ताकि कुछ देर के लिए बच्चे का मन बहल जाए और माता-पिता अपना कुछ काम खत्म कर सकें या फिर बच्चों को खाना खिला सकें। 6 से 12 साल के बच्चों को फोन इसलिए दिया जाता है ताकि वे घरवालों से टच में रह सकें जब वे लंबे समय के लिए घर से बाहर जा रहे हों।’
डॉ जेटली कहती हैं कि अक्सर माता-पिता इस बात में गर्व महसूस करते हैं कि उनके छोटे बच्चे अपने आप ही यूट्यूब खोलकर अपनी पसंद का विडियो देख लेते हैं। लेकिन यह खुश होने की बात नहीं है बल्कि यह एक समस्या है। बच्चों पर नजर ना रखी जाए तो वे अपने मन से यूट्यूब और इंटरनेट पर मौजूद कुछ भी देख सकते हैं जो बच्चों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।