नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में आज पांच जजों की संवैधानिक पीठ आधार की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है। आधार में निजता के अधिकार के उल्लंघन को लेकर देश में चल रही बहस के बीच यह सुनवाई बेहद अहम है। संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण है। इससे पहले नौ जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि निजता एक मौलिक अधिकार है।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सेवाओं और वेलफेयर स्कीम के लिए आधार को लिंक करने की मियाद 31 मार्च तक बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने मामले में कहा था कि तमाम सेवाओं और वेलफेयर स्कीम के लिए आधार को लिंक करने की मियाद 31 मार्च की जाती है।
इन मामलों पर भी हो सकती है सुनवाई
उम्मीद जताई जा रही है कि संवैधानिक पीठ आधार की अनिवार्यता समेत सबरीमाला में महिलाओं की प्रवेश पर रोक समेत 8 मामलों पर बुधवार को सुनवाई करेगी। यह पूरी जानकारी सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई है। संविधान बेंच आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता, समलैंगिक संबंध बनाने को अपराध मानने को सही ठहराने के अपने ही फैसले पर पुनर्विचार करेगी। बेंच केरल के सबीरामाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के मुद्दे, दूसरे धर्म में शादी करने पर पारसी महिलाओं की पहचान खोने और आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे सांसद और विधायक को अयोग्य मानने समेत अन्य मुद्दों पर भी सुनवाई होगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर संविधान पीठों का संयोजन को अपलोड नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाने पर भी सुनवाई करेगा। दरअसल शादी के बाद अवैध संबंध से जुड़े कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक करार दिए जाने के लिए शीर्ष कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उच्चतम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है।
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंध बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उस महिला का पति व्यभिचार का केस दर्ज करा सकता है, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। जो भेदभाव वाला है और इस प्रावधान को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए।