नई दिल्ली- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में एक मजबूत रास्ते पर आगे बढ़ रही है। दिलचस्प बात यह है कि आईएमएफ की ओर से यह बयान ऐसे समय में सामने आया है जब उसने चालू और अगले वर्ष के लिए भारत के विकास पूर्वानुमान को घटाया है। गौरतलब है कि आईएमएफ ने पिछले हफ्ते 2017 के लिए भारत के विकास दर के अनुमान को घटाकर 6.7 फीसद कर दिया था।
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लेगार्ड ने बताया, “भारत के संदर्भ में हमने इसे थोड़ा डाउनग्रेड किया है, लेकिन हमारा विश्वास है कि भारत मध्यम और लंबी अवधि में ग्रोथ के रास्ते पर है जो पिछले कुछ वर्षों में भारत में किए गए संरचनात्मक सुधारों के परिणामस्वरूप और अधिक ठोस है।”
भारत सरकार की ओर से किए गए हालिया प्रयासों नोटबंदी और जीएसटी को ऐतिहासिक प्रयास करार देते हुए उन्होंने कहा, “नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े सुधार के कदमों के कारण कुछ समय तक आर्थिक सुस्ती की स्थिति बनना कोई ताज्जुब की बात नहीं है। अब हम भारत की बात करते हैं। हमने विकास दर का अनुमान कम किया है। लेकिन हमारा मानना है कि पिछले कुछ वर्षो में उठाए गए सुधार के कदमों के परिणामस्वरूप मध्यम और लंबी अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा मजबूत रास्ते पर बढ़ रही है। घाटा कम हुआ है और महंगाई भी नीचे बनी हुई है। इन संकेतों के साथ मिलकर इन नीतिगत सुधारों से भविष्य में वे नतीजे मिलेंगे, जिनकी उम्मीद भारत का युवा कर रहा है।”
लेगार्ड ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि राजकोषीय संयोजन, क्योंकि घाटा कम हुआ है एवं मुद्रास्फीति काफी नीचे रही है और संरचनात्कम सुधार वास्तव में उन लोगों के लिए नौकरियों का सृजन करेंगे जो कि देश की युवा आबादी है और जिनके भारत का भविष्य बनने की उम्मीद है।”
यूबीआइ की वकालत आईएमएफ ने इस बात का खंडन किया है कि वह भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को हटाकर यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआइ) लागू करने के पक्ष में है। मुद्राकोष की सालाना वित्तीय निगरानी रिपोर्ट के बाद इस तरह की खबरें आई थीं।आइएमएफ के वित्त विभाग के निदेशक विटोर गैस्पर ने कहा कि भारत को लेकर आई रिपोर्ट यूबीआइ के बारे में केवल केस स्टडी है। यह अध्ययन केवल इस उद्देश्य से किया गया कि कैसे बड़ी और अब अक्षम हो चुकी योजनाओं को बदला जा सकता है।