नयी दिल्ली : अपने कार्य प्रदर्शन को लेकर अब तक सवालों से बेपरवाह नरेंद्र मोदी सरकार को लगभग साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सबसे कठिन चुनौतियों और सवालों से जूझना पड़ रहा है यह सवाल घरेलू व बाहरी दोनों मोर्चों पर ताबड़तोड़ किये जा रहे हैं। नोटबंदी पर संसद में चर्चा के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री व देश में उदारवाद के जनक डाॅ मनमोहन सिंह का वह बयान हर कोई याद कर रहा है, जिसमें उन्होंने अपना अनुमान पेश करते हुए कहा था कि जीडीपी में दो प्रतिशत तक कमी आने की आशंका है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जहां प्रधानमंत्री मोदी के गृहप्रदेश गुजरात में ही यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी के जरिये अर्थव्यवस्था की रफ्तार राेक दी जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ गयी, वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिख कहा है कि अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर दिया है और उन्हें हारने के बाद भी वित्तमंत्री बनाया गया। ऐसा पहली बार नहीं है, जब सिन्हा ने मोदी सरकार पर सवाल उठाया है। छह बार देश का बजट पेश कर चुके अनुभवी सिन्हा पूर्व में भी समय-समय पर अपनी ही पार्टी की सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं। पिछले महीने गवर्नेंस नाउ को दिये एक इंटरव्यू में भी उन्होंने अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा था कि रिफॉर्म प्रोसेस बहुत धीमी है।
पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने क्या लिखा है ?
यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने आलेख का शीर्षक भी बड़ा दिलचस्प दिया है : आइ नीड टू स्पीक अप नाउ। यानी मुझे अब बोलना ही होगा। सिन्हा ने लिखा है कि अगर वे नहीं बोलेंगे तो वे अपने राष्ट्रीय कर्तव्य को नहीं निभा रहे होंगे। उन्होंने लिखा है कि वे जो बोलने जा रहे हैं वह बड़ी संख्या में भाजपा के लोगों की भावनाएं हैं, लेकिन वे डर से नहीं बोल पा रहे हैं। यशवंत सिन्हा ने लिखा है कि सरकार के आंकड़े जीडीपी की मौजूदा वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत बता रहे हैं, लेकिन वास्तव में वह 3.7 प्रतिशत है। सिन्हा ने इसके पीछे तर्क दिया है कि सरकार ने 2015 में जीडीपी तय करने के तरीके बदल दिये, उससे यह नंबर अभी 5.7 प्रतिशत दिख रही है। सिन्हा ने लिखा है कि आज निजी निवेश कम हो गया है। खेती संकट में है, विनिर्माण उद्योग में सुस्ती है और औद्योगिक उत्पादन ध्वस्त हो गया है। सर्विस सेक्टर की रफ्तार धीमी है व निर्यात घट गया है। हर क्षेत्र में इकोनॉमी संकट में है। पूर्व वित्तमंत्री ने मनमोहन सिंह के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि नोटबंदी आर्थिक आपदा साबित हुई है। सिन्हा ने लिखा है कि ठीक-ढंग से जीएसटी लागू नहीं करने से कारोबारी जगत में उथल-पुथल मच गयी है। नौकरियां गयी हैं और नौकरियों के नये मौके नहीं बन रहे हैं।
दरअसल, नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी के कारण हाल में आये जीडीपी के आंकड़े के अनुसार इसकी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत है और यह चीन से कम है। इसके साथ ही सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था का भारत का तमगा चीन के हाथों छिन गया है।
अंतत: मनमोहन के फार्मूल को सरकार को अपनाना पड़ा
नरेंद्र मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद पूर्व के डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल के सी रंगराजन के नेतृत्व वाली आर्थिक सलाहकार परिषद् काे भंग कर दिया गया। साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूर करने के करीब पहुंचे मोदी सरकार को एक बार फिर आर्थिक सलाहकार परिषद् की जरूरत महसूस हुई है और दो दिन पूर्व अर्थशास्त्री विवेक देवराय की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया है। इस परिषद् में रतन घाटल, रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला और आशिमा गोयल को सदस्य बनाया गया है। इस परिषद् को अधिकार संपन्न बनाया गया है और यह आर्थिक मुद्दों पर न सिर्फ प्रधानमंत्री द्वारा मांगें जाने पर बल्कि स्वयं भी उनसे संपर्क कर अपना सुझाव दे सकेगा। यह आर्थिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री द्वारा भेजे गये बिंदुओं पर उन्हें सलाह उपलब्ध करायेगी और अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न बिंदुओं का विश्लेषण करेगी और पीएम को उससे अवगत व आगाह करायेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले मोदी सरकार का यह फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आजमाये हुए फार्मूले के अनुरूप अपनाना पड़ा और एक तरह से आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से जंग जीतने के लिए स्वयं प्रधनमंत्री मोर्चे पर आ गये हैं। यशवंत सिन्हा ने अपने लेख में आर्थिक सलाहकार परिषद की तुलना पांच पांडवों से की है, जिसके जरिये मोदी युद्ध जीतना चाहते हैं।
अार्थिक पैकेज के जरिये सबसे कमजोर कड़ी को दुरुस्त करने की कवायद
नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि या यूएसपी भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार संघर्ष को माना जाता है। सरकार के बयानों के अनुसार, नोटबंदी भी इस संघर्ष की एक अहम कड़ी थी। सरकार इस मुद्दे पर सक्रिय है। लेकिन, रोजगार सृजन एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर राहुल गांधी से लेकर यशवंत सिन्हा तक हमलावर हैं। राहुल गांधी ने अमेरिका दौरे के दौरान कहा था कि हर दिन 30 हजार युवा रोजगार की मांग लेकर आ रहे हैं और मात्र 450 युवाओं को नौकरियां मिल रही हैं। मोदी सरकार बड़े स्तर पर रोजगार सृजन के नारे के साथ अस्तित्व में आयी थी। प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर कहा चुके हैं कि हम नौकरी मांगने वाले नहीं नौकरी देने वाले युवा तैयार करेंगे। पिछले दिनों इस पैमाने पर कौशल विकास मंत्रालय के विफल रहने पर वहां पर मंत्री के रूप में तैनात रहे राजीव प्रताप रूडी को पद छोड़ना पड़ा। सरकार पिछले एक-डेढ़ सप्ताह से इकोनॉमी की सुस्ती को खत्म करने के लिए ऐसे क्षेत्रों को पैकेज देने पर विचार कर रही है, जिससे रोजगार सृजन हों। ये सेक्टर – विनिर्माण, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, निर्यात आदि हैं। सरकार बैंकिंग सेक्टर को भी पैकेज दे सकती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था के अच्छे या बुरे होने से इसका सीधा रिश्ता होता है।