अखिलेश यादव के मध्य प्रदेश दौरे: क्या यह सपा-कांग्रेस गठबंधन की राजनीतिक समीकरण को मजबूती देगा?
हाल के दिनों में, इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच तनाव बढ़ गए हैं। उत्तर प्रदेश के घोसी उपचुनाव में गठबंधन की जीत के बाद ही यहां पर सार्वजनिक असहमतियों की शुरुआत हो गई। इन विवादों का अब और गंभीर मोड़ लिया जा रहा है, खासकर इसके पीछे इसी साल के अंत में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के पर्दाफाश का भी हिस्सा है, जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, और छत्तीसगढ़, जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा हो रही है।
इस संदर्भ में, अगर सपा फिर भी गठबंधन का हिस्सा रहकर इन राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी उतारती है, तो यह कांग्रेस को नुकसान पहुँचा सकता है। खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान में, जहां सपा के प्रत्याशी पहले ही कई चुनावों में विजयी रहे हैं।
अखिलेश यादव, जिन्होंने मध्य प्रदेश के लिए पहले ही आधे दर्जन प्रत्याशियों की घोषणा की है, 27 सितंबर और 28 सितंबर को राज्य की यात्रा पर निकलेंगे। अखिलेश यादव रीवा के सिरमौर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करेंगे। यह दर्शाता है कि अखिलेश यादव के इस दौरे का उद्देश्य गठबंधन के अंदर बढ़ रहे राजनीतिक दबाव का जवाब देना है। इससे स्पष्ट होता है कि उनका कहना है कि गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए नहीं, विधानसभा चुनाव के लिए भी था।
समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश के लिए अगस्त में छह प्रत्याशियों की सूची जारी की थी। इन प्रत्याशियों में निवाड़ी से मीरा यादव, भंडैर से सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश आर.डी. राहुल, मेहगांव से डॉ. बृजकिशोर सिंह गुर्जर, धोहनी से विश्वनाथ सिंह मरकाम, और चितरंगी से श्रवण कुमार गोंड शामिल हैं।
समाजवादी पार्टी के राजनीतिक कदम इन चुनावी राज्यों में बड़ी रुचि पैदा कर रहे हैं। पार्टी को एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने का प्रयास दिखाई दे रहा है। हालांकि, राजनीतिक जागरूक भी इसे दबाव डालने के रूप में भी देख रहे हैं, क्योंकि अखिलेश यादव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि समाजवादी पार्टी यहां से सीटें मांगने की बजाय सीटें देने को तैयार है। अब जब कांग्रेस के प्रभावित क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तो पार्टी वहां अपने प्रत्याशियों की घोषणा करके कांग्रेस के गठबंधन धर्म को कितना निभाने की कोशिश कर रही है, यह जानने की कोशिश कर रही है।